Advertisement

header ads

कविता: अमर अमृता | जय खीचड़

मध्य सदी से मरूधरा में

महत्ता तरु की दिखाई दी ।

मरू तरु की विरह वेदना

लिपटी नार में दिखाई दी ।

अमर अमृता जग प्रणेति

तरु हित देह कटाई दी । ।

मरूधर भोम तरु काटने आया गिरधर भण्डारी,

ढोल डंके फरमान, सुनो परगना नर नारी,

राजन् के आदेश से कटेगी खेजङिया सारी,

इस काज को करने में करो सहायता हमारी,

पथ सम्मुख विपत्ति भई

राम बाण अमृता दी,

मरू तरु की विरह वेदना

लिपटी नार में दिखाई दी ।

अमर अमृता जग प्रणेति

तरु हित देह कटाई दी । ।

अमृता अग्र पथगमी विटप विरह हरी नर नारी,

तरु पहले तन कटे खड्ग चोट आस्र ओघ भारी,

विटप हित देह तज दियो संदेश जग आधारी,

मरु भोम अमृता देवी वन माता अवतारी । ।

कटते तरु से पहले तन

ने जग में प्रेम गवाई दी ।

मरू तरु की विरह वेदना

लिपटी नार में दिखाई दी ।

अमर अमृता जग प्रणेति

तरु हित देह कटाई दी । ।

 




लेखक के बारे में

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ